१५-५-२०११ की ओ रात , एक दुसरे को फिर से मिलने का आश्वासन देते सिनिअर्स जो अकेसन था उनके फेरेवेल का | एक दुसरे से हाथ मिलाना व गले लगना तो शायद आदत सी बन गयी थी | उनकी आँखों में आंसू और एक दुसरे से जुदा होने का गम शायद यही बता रहा था कि -
हम भूल न पाएंगे तुमको
हम याद भी आएंगे तुमको |
यादो कि फुलवारी ले
आयेंगे मिलने फिर कल को ||
शुरू में तो सब सामान्य था इसी बीच खुदा को भी ये रुसवाई पसंद नहीं आयी , तो उसने हवा के छोटी सुनामी को भेज दिया | कुर्सियों ने गिर करउनका अभिनन्दन किया -
खुदा ने खुद को रोक न पाया
आँखों में आंसू बहर आया |
कुर्सियों ने यु गिर करके
हमको ये अनुभव करवाया ||
समय का चक्र चलता गया | ९ ,१० अऔर अब तो १०.३० भी हो गया |अब उनको अलग होने का समय आ गया था |ओं लोग बहुत उदास थे , उनके चेहरे उतर चुके थे -
हम हुए अकेले बिन तेरे
जीवन कि लम्बी रहो में
बस यादे रह गयी है उनकी
प्यार भरे इस महफ़िल में
हे दूर देश के बनवासी
हे सुदूर के पाखीगन
मै ये सोच नहीं पाया
ऐसी होगी अपनी बिछुणन
है बिछुड़ रहे नभ में पतंग
है घाट छोड़ नौका के संग
तुम भूल न जाना हम सब को
है राह छोड़ जैसे बिहंग