Saturday, March 20, 2010


दोस्तों अभी मै कुछ दिनों पहले poem making  context  में participate किया था जिसमे मुझे कविता लिखने के लिए topic मिला था   ' कोयल और कौआ ' और मैंने  यही   कविता लिखी  -
                      
कोयल की तो बात निराली , कौए की दिमाग निराली
कोयल कूँ -कूँ कौवा बोले , कौ -कौ की आवाज जुबानी|
जब कोयल की बात है आती, सुंदर छबि दिल में चुभ जाती
जब आती कौए की बारी, कौ कौ की आवाज खफाती ||


           कोयल की तो बात निराली कौए की दिमाग निराली,

                     कौए  दिन बहर घुमा करते ,कोयल सावन में है आती |
                      पर कूँ कूँ की आवाजो से, सबके दिल को भा जाती,
                     नाम बणी कोयल की प्यारी, कौए की बात बणी प्यारी |
                    दोनों है काले कलि, पर जनता क्यों चाहे कोयल सारी ||

        कोयल की तो बात निराली कौए की दिमाग निराली,
       कोयल कूँ -कूँ कौवा बोले , कौ -कौ की आवाज जुबानी


कुछ बात छिपा इसके अंदर ,कुछ राग छिपा इसके अंदर 
 जब बाँट रहे थे राग प्रभु ,सो रहा कौआ घर  के अंदर   


   कोयल की तो बात निराली       कौए की दिमाग निराली,
 कोयल कूँ -कूँ कौवा बोले , 
कौ -कौ की आवाज जुबानी

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